एक घने जंगल के बीचोबीच, जहाँ चाँदनी पत्तों से छनकर धरती पर नाचती थी, रहता था सिड नाम का एक आलसी स्लॉथ। सिड बहुत प्यारा था, उसकी आँखें बड़ी और भूरी थीं, और उसके बाल नरम और रेशमी थे। मगर सिड की एक ख़ास बात थी – वह बहुत ज़ोर से खर्राटे लेता था! इतना ज़ोर से कि पूरे जंगल में गूँजते थे।
रात होते ही जब तारे आसमान में टिमटिमाने लगते, सिड अपनी पसंदीदा डाल पर चढ़ जाता और गहरी नींद में खो जाता। और फिर शुरू होते उसके खर्राटे! “घुर्र… घुर्र… घर्रrrrr!” आसपास के पेड़ हिल जाते, पत्तियाँ काँपने लगतीं और बेचारे जुगनू, जो रात को अपनी रोशनी से जंगल को सजाते थे, डर के मारे अपनी बत्तियाँ बुझा लेते।
एक रात, जब सिड ज़ोर-ज़ोर से खर्राटे ले रहा था, एक छोटी सी जुगनू, जिसका नाम तारा था, हिम्मत करके सिड के पास पहुँची। तारा बहुत डरी हुई थी, लेकिन उसने सोचा कि अगर सिड के खर्राटों को नहीं रोका गया, तो जंगल में रोशनी कैसे होगी?
तारा ने धीरे से सिड के कान में फुसफुसाया, “सिड… सिड… क्या तुम सुन रहे हो?”
सिड ने खर्राटे लेना बंद नहीं किया। तारा ने और ज़ोर से कहा, “अरे सिड! तुम्हारे खर्राटों से हमारी रोशनी चली जाती है!”
इस बार, सिड ने थोड़ी सी करवट ली और अपनी एक आँख खोली। उसने तारा को देखा और पूछा, “क्या हुआ, छोटी जुगनू? इतनी रात को क्या कर रही हो?”
तारा ने डरते डरते कहा, “सिड, तुम्हारे खर्राटे बहुत ज़ोर से हैं। जब तुम खर्राटे लेते हो, तो हम जुगनू डर जाते हैं और हमारी रोशनी कम हो जाती है। जंगल में अँधेरा हो जाता है।”
सिड को यह सुनकर बहुत बुरा लगा। वह नहीं चाहता था कि उसकी वजह से किसी को परेशानी हो। उसने कहा, “ओह! मुझे माफ़ करना, तारा। मुझे नहीं पता था कि मेरे खर्राटों से तुम्हें तकलीफ होती है। मैं क्या कर सकता हूँ?”
तारा ने सोचा और फिर बोली, “क्या तुम धीरे खर्राटे नहीं ले सकते?”
सिड ने कोशिश की। उसने धीरे-धीरे साँस ली और धीरे-धीरे छोड़ी। लेकिन जैसे ही वह सोने लगा, उसके खर्राटे फिर से ज़ोर से शुरू हो गए! “घुर्र… घुर्र…”
तारा उदास हो गई। तभी एक बूढ़ा उल्लू, जो पास ही पेड़ पर बैठा सब देख रहा था, नीचे आया। दादा उल्लू बहुत समझदार थे। उन्होंने कहा, “सिड, परेशान मत हो। हर किसी की अपनी आवाज़ होती है। तुम्हारे खर्राटे तुम्हारी आवाज़ हैं। लेकिन शायद हम इसे एक मधुर आवाज़ बना सकते हैं।”
दादा उल्लू ने सिड को कुछ ख़ास पत्ते दिए और कहा, “इन्हें चबाओ। यह तुम्हारी साँस को थोड़ा हल्का कर देंगे।” सिड ने पत्ते खाए। फिर दादा उल्लू ने तारा और बाकी जुगनुओं को बुलाया। उन्होंने कहा, “जब सिड खर्राटे लेना शुरू करे, तो तुम सब अपनी रोशनी से एक लय बनाओ। सिड के खर्राटों के साथ अपनी रोशनी को चमकाओ और बुझाओ।”
जुगनुओं ने वैसा ही किया। जैसे ही सिड ने खर्राटे लेना शुरू किया, “घुर्र… घुर्र…”, जुगनू अपनी रोशनी से नाचने लगे। उनकी रोशनी सिड के खर्राटों के साथ ताल मिलाकर चमक रही थी और बुझ रही थी। सिड के खर्राटे अब डरावने नहीं लग रहे थे। वे एक धीमी, मधुर धुन की तरह लग रहे थे, जैसे जंगल का कोई शांत गीत हो।
तारा और बाकी जुगनू बहुत खुश हुए। उन्होंने मिलकर सिड के खर्राटों को जंगल की एक अनोखी लोरी बना दिया। उस रात से, जब भी सिड खर्राटे लेता, जुगनू अपनी रोशनी से नाचते और पूरा जंगल एक सुंदर, शांत रोशनी से भर जाता। और सिड, खर्राटे लेता हुआ भी, जान गया कि उसकी आवाज़, चाहे कितनी भी ज़ोर की क्यों न हो, प्यार और रोशनी ला सकती है।
और अब, तुम भी धीरे से आँखें बंद करो और सुनो… क्या तुम्हें भी सिड के खर्राटों की मधुर लोरी सुनाई दे रही है? शुभ रात्रि!