एक छोटे से टापू पर, जहाँ नारियल के पेड़ हवा में झूमते थे और पानी नीलम की तरह चमकता था, पेनेलोपे नाम की एक अनानास रहती थी। पेनेलोपे साधारण अनानास नहीं थी। वह इंद्रधनुष बनाती थी! उसके पास जादुई रंग थे जो सूरज की किरणों से बने थे, और जब भी वह खुश होती, वह आकाश में एक चमकदार, जीवंत इंद्रधनुष चित्रित करती।
पेनेलोपे का दिल रंगों से भरा था। वह हर सुबह उठती, ताज़ी हवा में गहरी सांस लेती, और सोचती कि आज कौन सा रंग बनाना है। कभी-कभी वह लाल और नारंगी का एक गर्म इंद्रधनुष बनाती, जैसे डूबते सूरज का रंग। कभी-कभी वह नीला और हरा रंग चुनती, शांत समुद्र की तरह। और कभी-कभी, जब वह बहुत खुश होती, वह सारे रंग एक साथ मिला देती, एक ऐसा इंद्रधनुष जो किसी सपने जैसा लगता था।
एक दिन, पेनेलोपे ने देखा कि उसके रंग थोड़े फीके लग रहे हैं। लाल उतना लाल नहीं था, नीला उतना नीला नहीं था। उसने एक छोटा सा इंद्रधनुष बनाने की कोशिश की, लेकिन वह इतना चमकीला नहीं था। पेनेलोपे उदास हो गई। इंद्रधनुष बनाना उसे सबसे ज़्यादा पसंद था। वह अपने रंगों को वापस चमकीला कैसे बनाएगी?
वह टापू के सबसे बुद्धिमान प्राणी, बूढ़े नारियल दादाजी के पास गई। दादाजी नारियल बहुत पुराने थे और उन्होंने बहुत कुछ देखा था। पेनेलोपे ने उन्हें अपनी समस्या बताई। दादाजी नारियल ने अपनी पत्तियां हिलाईं और धीरे से कहा, “पेनेलोपे, रंग दिल से आते हैं। शायद तुम्हें नए रंगों की तलाश करनी चाहिए। टापू के दूसरी तरफ, फूल घाटी में जाओ। वहाँ तुम्हें नए रंग और नई प्रेरणा मिल सकती है।”
पेनेलोपे फूल घाटी की ओर चली। रास्ता थोड़ा लंबा था, लेकिन रास्ते में उसने रंग-बिरंगे फूल और गाने वाले पक्षी देखे। जब वह घाटी में पहुँची, तो उसकी आँखें चमक उठीं। घाटी लाखों फूलों से भरी हुई थी! लाल गुलाब, पीले सूरजमुखी, नीली घंटियाँ, और बैंगनी गुलदाउदी – हर रंग जो पेनेलोपे सोच सकती थी, वहाँ था।
पेनेलोपे ने हर फूल को ध्यान से देखा। उसने उनकी खुशबू सूंघी, उनकी पंखुड़ियों को छुआ, और उनके रंगों को अपने दिल में भर लिया। उसने महसूस किया कि उसके अंदर नए रंग जाग रहे हैं। उसने एक गहरी सांस ली और वापस अपने घर की ओर भागी।
जब पेनेलोपे वापस आई, तो वह रंगों से भरी हुई थी। उसने अपना जादुई ब्रश उठाया और आकाश में एक बड़ा सा स्ट्रोक किया। और क्या आश्चर्य! आकाश में एक ऐसा इंद्रधनुष बना जो पहले से कहीं ज़्यादा चमकीला और सुंदर था। उसमें फूल घाटी के सारे रंग थे – गुलाब का लाल, सूरजमुखी का पीला, घंटी का नीला, और गुलदाउदी का बैंगनी। पूरा टापू पेनेलोपे के नए इंद्रधनुष को देखकर खुश हो गया।
उस दिन से, पेनेलोपे ने और भी खूबसूरत इंद्रधनुष बनाना जारी रखा। उसने सीखा कि नए रंग खोजने के लिए, हमें अपने आसपास की दुनिया को ध्यान से देखना चाहिए और अपने दिल को नए अनुभवों से भरना चाहिए। और हर रात, जब बच्चे सोते थे, पेनेलोपे का इंद्रधनुष आकाश में चमकता था, उन्हें मीठे सपने दिखाता था।