चाँदनी रात थी, और सितारे ऐसे चमक रहे थे जैसे किसी ने आसमान में हीरे बिखेर दिए हों। गाँव, जिसका नाम ‘सुरतालपुर’ था, गहरी नींद की तैयारी कर रहा था। सुरतालपुर एक ऐसा गाँव था जहाँ हर रात एक जादुई लोरी गाई जाती थी। यह लोरी गाँव के बीचोंबीच खड़े बरगद के पेड़ से आती थी, जिसकी पत्तियाँ धीमी, मधुर संगीत में गुनगुनाती थीं।
गाँव में रानी नाम की एक छोटी लड़की रहती थी। रानी को लोरी बहुत पसंद थी। हर रात, वह अपनी खिड़की के पास बैठकर लोरी सुनती और धीरे-धीरे सपनों की दुनिया में खो जाती। लोरी के बोल इतने प्यारे और शांत करने वाले थे कि पूरे गाँव में शांति छा जाती थी।
एक रात, जब बरगद के पेड़ से लोरी शुरू हुई, तो रानी को कुछ अजीब लगा। धुन तो वही थी, पर बोल… बोल गायब थे! लोरी में शब्द नहीं थे, सिर्फ एक मधुर, पर अधूरी सी धुन थी। रानी हैरान हो गई। उसने अपनी माँ को बताया, “माँ, लोरी के बोल कहाँ गए?”
माँ ने ध्यान से सुना और कहा, “हाँ रानी, मुझे भी लग रहा है कि लोरी आज चुप है।”
रानी को चिंता हुई। लोरी के बिना, गाँव में रात अधूरी लग रही थी। उसने फैसला किया कि वह लोरी के खोए हुए बोल ढूंढेगी। वह बरगद के पेड़ के पास गई और धीरे से पूछा, “बरगद दादा, क्या आप जानते हैं लोरी के बोल कहाँ चले गए?”
बरगद दादा की पत्तियाँ धीरे से सरसराईं, जैसे वे फुसफुसा रही हों, “शायद हवा उन्हें ले गई… या तारों ने चुरा लिया… या शायद वे सपनों की नदी में तैर रहे हैं।”
रानी ने पहले हवा से पूछा। हवा ने कहा, “मैंने तो बस पत्तों को छेड़ा, बोल तो मेरे पास नहीं हैं।” फिर रानी तारों के पास गई। तारों ने टिमटिमाते हुए कहा, “हम तो बस चमकते हैं, बोल तो हमने नहीं लिए।”
अंत में, रानी सपनों की नदी के किनारे पहुँची। नदी चाँदनी में चाँदी की तरह चमक रही थी। उसने नदी से पूछा, “नदी माँ, क्या आपने लोरी के बोल देखे हैं?”
नदी धीरे से बही और किनारे पर एक छोटा सा, चमकीला पत्थर छोड़ गई। पत्थर में धीमी सी रोशनी थी। जैसे ही रानी ने पत्थर को उठाया, उसने धीमी, मधुर आवाज़ सुनी – लोरी के बोल! बोल पत्थर में कैद हो गए थे।
रानी खुशी से पत्थर को लेकर बरगद के पेड़ के पास वापस आई। उसने पत्थर को पेड़ की जड़ के पास रखा। तुरंत, बरगद के पत्तों से फिर से मधुर लोरी गूंजने लगी, पूरी और शब्दों के साथ। गाँव में फिर से शांति छा गई। रानी ने राहत की सांस ली और अपने घर वापस चली गई। खिड़की के पास बैठकर, उसने पूरी लोरी सुनी और मुस्कुराते हुए सपनों में खो गई। उस रात, सुरतालपुर में हर बच्चा मीठी नींद सोया, लोरी के जादू में खोया हुआ। और रानी जानती थी, भले ही कभी-कभी लोरी के बोल खो जाएं, उन्हें हमेशा प्यार और थोड़ी सी खोज से वापस पाया जा सकता है।