The Riddle of the Rainbow River Runes

The Riddle of the Rainbow River Runes

चाँदनी रात में, एक जादुई गाँव था – रंगनगर। रंगनगर में एक अनोखी नदी बहती थी, जिसका नाम था इंद्रधनुष नदी। यह नदी सात रंगों के पानी से भरी थी – लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, जामुनी और बैंगनी। नदी के किनारे चमकते पत्थरों पर प्राचीन रून अक्षर खुदे हुए थे।

गाँव में रिया और वीर नाम के दो प्यारे बच्चे रहते थे। रिया को रंगों से प्यार था और वीर को रहस्यों से। एक दिन, जब वे इंद्रधनुष नदी के किनारे खेल रहे थे, रिया ने देखा कि नदी का रंग थोड़ा फीका पड़ गया है। “वीर, क्या तुम्हें भी नदी कुछ कम रंगीन लग रही है?” रिया ने पूछा।

वीर ने ध्यान से देखा और कहा, “हाँ, रिया, तुम ठीक कह रही हो। और देखो, ये रून अक्षर भी पहले जितने चमक नहीं रहे।” दोनों बच्चे चिंतित हो गए। इंद्रधनुष नदी रंगनगर की शान थी, और उसके रंग फीके पड़ना अच्छी बात नहीं थी।

उन्होंने गाँव के सबसे बुजुर्ग, दादा बरगद, से बात करने का फैसला किया। दादा बरगद गाँव के बीच में खड़े एक विशाल बरगद का पेड़ थे, जो बहुत बुद्धिमान माने जाते थे। रिया और वीर दादा बरगद के पास गए और उन्हें नदी की समस्या बताई।

दादा बरगद ने अपनी गहरी आवाज़ में कहा, “बच्चों, इंद्रधनुष नदी के रून अक्षरों में एक रहस्य छिपा है। जब तक वह रहस्य सुलझेगा नहीं, नदी का रंग फीका ही रहेगा। यह एक पहेली है, जिसे तुम्हें मिलकर सुलझानी होगी।”

रिया और वीर उत्साहित हो गए। उन्हें पहेलियाँ सुलझाना बहुत पसंद था। उन्होंने दादा बरगद से पहेली के बारे में और जानकारी मांगी। दादा बरगद ने कहा, “ध्यान से देखो, नदी के किनारे के हर पत्थर पर एक रून अक्षर है। उन अक्षरों को सही क्रम में पढ़ो, और तुम्हें उत्तर मिल जाएगा।”

रिया और वीर वापस नदी के किनारे गए। उन्होंने हर पत्थर को ध्यान से देखा। रून अक्षर अजीब और सुंदर थे। उन्होंने मिलकर अक्षरों को पढ़ने की कोशिश की। पहले कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन फिर वीर को एक विचार आया। “रिया, क्या हम अक्षरों को रंगों के क्रम में लगाने की कोशिश करें?” वीर ने कहा।

यह एक शानदार विचार था! रिया और वीर ने इंद्रधनुष के रंगों के क्रम में पत्थरों को लगाया – लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, जामुनी और बैंगनी। जैसे ही उन्होंने पत्थरों को सही क्रम में लगाया, रून अक्षर चमकने लगे! और नदी का पानी भी फिर से सात रंगों से जगमगा उठा!

अचानक, पत्थरों से एक मधुर संगीत निकलने लगा। यह संगीत इतना प्यारा था कि रिया और वीर मंत्रमुग्ध हो गए। दादा बरगद ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुमने पहेली सुलझा ली, बच्चों! इंद्रधनुष नदी की पहेली थी – प्रकृति के रंगों का सम्मान करो, और वह हमेशा चमकती रहेगी।”

रिया और वीर समझ गए। उन्होंने प्रकृति के रंगों का सम्मान करना सीखा और जाना कि मिलकर काम करने से हर मुश्किल आसान हो जाती है। उस रात, रंगनगर इंद्रधनुष नदी के रंगों और मधुर संगीत से जगमगा उठा, और रिया और वीर खुश होकर मीठी नींद में सो गए।

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